हिन्दू सभ्यता में मुहूर्त या काल गड़ना का विशेष महत्व है,किसी भी कार्य को करने के लिए ज्योतिष के मध्य से समय का विशेष विचार किया जाता है,तथा समय की शुभता को पंचांग के माध्यम से देखा जाता है।
पंचन क्या है-पंचांग अर्थात पांच+अंग,पंचाग मुख्यता पांच चीजों से मिलकर बना है यह है-तिथि,वार,नक्षत्र,योग,करण,इसके द्वारा किसी भी शुभ-अशुभ समय का ज्ञान सरलता से किया जाता है।
तिथि-तिथि का आधार चन्द्रमा है।चन्द्रमा के 12 अंशो से एक तिथि का निर्माण होता है,या कहे चन्द्रमा की एक कला=12 अंशो को तिथि कहा जाता है।12 =12 अंशो के भोग के उपरांत जब चन्द्रमा 180 अंशों का भोग करता है तो उस अंशात्मक स्थिति को या तिथि को पूर्णिमा कहा जाता हैं और जब यह अन्तर 360 अंशों का हो जाता है तो इसे अमावस्या कहा जाता हैं। एक मास में 30 तिथियां होती हैं।15 कृष्ण पक्ष की और 15 तिथि शुक्ल पक्ष की,शुक्ल में अंतिम तिथि पूर्णिमा व कृष्ण पक्ष में अंतिम तिथि अमावस्या होती है।
तिथियों के नाम- 1 प्रतिपदा, 2 द्वितीय, 3 तृतीया, 4 चतुर्थी, 5 पंचमी, 6 षष्ठी, 7 सप्तमी, 8 अष्टमी, 9 नवमी, 10 दशमी, 11 एकादशी, 12 द्वादशी, 13 त्रयोदशी, 14 चतुर्दशी और 15 पूर्णिमा,16 अमावस्या।
वार- वार की गड़ना क्रमसः सूर्योदय से सूर्योदय तक मानी जाती है एवं वारो की संख्या सात है।
1. रविवार, 2. सोमवार, 3. मंगलवार, 4. बुद्धवार, 5. गुरुवार, 6. शुक्रवार और 7. शनिवार।
नक्षत्र-आकाश में ताराओं के समूह को नक्षत्र कहा जाता है,न क्षरती इतिै नक्षत्रं इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो चलते नहीं है उन्हें नक्षत्र कहा जाता है।नक्षत्रो की संख्या 27 होती है एवं ,अभिजीत को मिलकर 28 माने जाते है।जो क्रमसः इस प्रकार है-1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्र्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. अश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गुनी 12. उत्तराफाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ 21. उतराषाढ 22. श्रवण 23. घनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वाभद्रपद 26. उत्तराभाद्रपद 27. रेवती।
योग-फलित ज्योतिष में कुछ विशिष्ट काल व अवसर जो सूर्य और चन्द्रमा के कुछ विशिष्ठ स्थानों में आने के कारण होते है उन्हें योग कहते है।योगो की संख्या 27 है जो इस प्रकार है-1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3. आयुष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सुकर्मा, 8.घृति, 9.शूल, 10. गण्ड, 11. वृद्धि, 12. ध्रव, 13. व्याघात, 14. हर्षल, 15. वङ्का, 16. सिद्धि, 17. व्यतीपात, 18.वरीयान, 19.परिधि, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शुभ, 24. शुक्ल, 25. ब्रह्म, 26. ऐन्द्र, 27. वैघृति।
करण-तिथि के आधे भाग को करण माना जाता है।करण दो प्रकार के होते है चर व स्थिर चर करण सात होते है व स्थिर करण चार होते है।जो क्रमसः इस प्रकार है- चर करण 1. बव, 2.बालव, 3.कौलव, 4.तैतिल, 5.गर, 6.वणिज्य, 7.विष्टी,
स्थिर करण-1 – शकुनि, 2.चतुष्पाद, 3.नाग, 4.किंस्तुघन।
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