12 राशियाँ आकाश मण्डल में स्थित है। राशि शब्द का अर्थ ढेर अथवा समूह है। चूँकि राशियाँ नक्षत्र समूह से बनी है इसलिए इन्हें राशि कहते है। अंग्रेज़ी में इन्हें साइन (sign) कहता है।साइन का अर्थ है निशान,चिन्ह।इनसे ग्रहो की स्थिति का पता चलता है।जो वस्तुएँ हम भूमंडल में देखते है उन्ही के अनुसार आकृति तारों से आकाश में बनी प्रतीत हुई,तो उसे वैसे ही नाम दे दिया गया।यह बात अनुभव में आयी है और यह अनुभव हज़ारों वर्ष का है कि राशि के नाम या आकृति के अनुसार उसके गुण भी होते है।
12 राशियो के पूरे रूप को राशि चक्र या भचक्र कहते है।पाश्चात्य ज्योतिष में इसे ज़ोडीऐक (zodiac) कहा जाता है। नाड़ीवृत के 23.5-23.5 अंश दोनो ओर याने 47 अंश की एक पेटी( belt)है।इसी के अन्दर हमेशा सूर्य,चंद्र तथा अन्य ग्रह भ्रमण करते दिखाई देते है।इसी को राशि चक्र कहते है।इस राशि चक्र का आरम्भ मेष से होता है।
राशि चक्र
1-मेष 5-सिंह 9-धनु
2-वृष. 6-कन्या 10-मकर
3-मिथुन 7-तुला 11-कुम्भ
4-कर्क 8-वृश्चिक 12-मीन
नक्षत्र विचार
नक्षत्र क्या है –
नक्षत्र तारा समूहों से बने है।इनसे हमारे सूर्य से कई गुना बड़े सूर्य तथा है।भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों की संख्या 27 मानी गयी है,कही अभिजित को लेकर 28 मानते है।27 और 28 दोनों का उपयोग प्राचीन काल से आज तक हो रहा है।नक्षत्रों के नाम इस प्रकार है-
1-अश्विनी 10-माघ 19-मूल
2-भरणी 11-पूर्वा-फाल्गुनी 20-पूर्वा-षाढा
3-कृतिका 12-उत्तरा-फाल्गुनी 21-उत्तरा-षाढा
4-रोहिणी 13-हस्त 22-श्रवण
5-मृगशिरा 14-चित्रा 23-धनिष्ठा
6-आर्द्रा. 15-स्वाति 24-शतभिषा
7-पुनर्वसु 16-विशाखा 25-पूर्वा-भाद्रपद
8-पुष्य 17-अनुराधा 26-उत्तरा-भाद्रपद
9-आश्लेषा 18-ज्येष्ठा. 27-रेवती
योगों के नाम –
योग दो प्रकार के होते हैं विष्कुम्भादि तथा आनन्दादि योग इनमे से विष्कुम्भ आदि योग ही ज्यादा प्रमुख हैं ।
विष्कुम्भादि योगों के नाम
विष्कुंभक, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य,
शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति,
शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव
व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि,
व्यतिपात, वरीयान, परिघ, शिव,
सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल,
ब्रह्म, ऐन्द्र वैधृति
कारणों के नाम
करण दो प्रकार के होते है चर और स्थिर
चर करण ७ होते हैं – बव बालव कौलब तैतिल गर वणिज विष्टि ( विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं )
स्थिर करण – किंस्तुघ्न नाग शकुनि और चतुष्पद
इस प्रकार तिथि वार नक्षत्र योग और करण के योग से पंचांग का निर्माण होता है ।
ज्योतिष शास्त्र के गंभीर शास्त्र है जो कि किसी महासागर से काम नहीं है इसलिए इस विषय में अति ज्ञान अनुभव तथा गहन अध्ययन कि आवश्यकता होती है तब ही किसी व्यक्ति के विषय में सटीक भविष्यवाणी कि जा सकती है । इसलिए इस विद्या को पढ़ने वाले का श्रोत्रिय वेदपाठी तथा सत्यवादी होना आवश्यक है तब ही ज्योतिषी के द्वारा किया गया भविष्य कथन सही हो सकता है ।